Raksha bandhan: रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) एक ऐसा त्यौहार है जिसे भाई बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को दिखाता है। इस साल 11 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाएगा. इस त्यौहार में बहन भाई की कलाई पर रक्षा धागा बांधकर अपना प्यार प्रकट करती है। और मीठा खिलाती है।
Raksha Bandhan का इतिहास
रक्षाबंधन का त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस साल 11 अगस्त को रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) मनाया जाएगा.लेकिन कभी आपने सोचा कि रक्षाबंधन के त्यौहार का क्या इतिहास रहा होगा। चलिए जानते हैं
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं की कहानी का अलग ही महत्व है। यह उस दौर की बात है जब राजपूतों को मुसलमान राजाओं से युद्ध करना पड़ता था अपने राज्य की रक्षा करने के लिए। उस वक्त भी राखी (Raksha Bandhan) बहुत प्रचलित थी जिसमें भाई अपनी बहन की रक्षा करता था। उस समय में चितोर की रानी कर्णावती हुआ करती थी, जो कि एक विधवा रानी थी।
1 दिन गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने उन पर हमला कर दिया था। इस दौरान रानी कर्णावती अपने राज्य को बचाने में असमर्थ होने लगी। जिसके बाद उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूं को भेजी उनकी रक्षा करने के लिए। उस राखी को देखने के बाद सम्राट हुमायूं ने अपने एक सेना की टुकड़ी चित्तोड़ भेज दी। जिसके बाद बहादुरशाह को अपनी सेना को पीछे हटाना पड़ा।
मां लक्ष्मी और राजा बलि
बली एक असुर सम्राट होने के साथ भगवान विष्णु का बड़ा भक्त भी था। जिस की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बाली की राज्य की रक्षा स्वयं करनी शुरू कर दी। जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होने लगी। एक दिन मां लक्ष्मी ने ब्राह्मण औरत का रूप ले लिया जिसके बाद वह बलि के महल में रहने लगी। और बाद में उन्होंने बलि के हाथों में राखी बांधी थी और बदले में उनसे कुछ देने को कहा। बलि इस बात से अनजान थे कि वह ब्राह्मण औरत और कोई नहीं मां लक्ष्मी है। इसलिए बलि ने उन्हें कुछ भी मांगने का अवसर दे दिया।
जिसके बाद माता लक्ष्मी ने बलि से भगवान विष्णु को उनके साथ वापस वैकुंठ लौट जाने का आग्रह किया। क्योंकि बलि ने पहले ही मां लक्ष्मी से वादा कर दिया था इसलिए बलि ने भगवान विष्णु को वापस लौटा दिया। और यही कारण है कि बहुत सी जगह पर राखी को बलेव्हा भी कहा जाता है।
कृष्ण और द्रौपदी
लोगों की रक्षा करने के लिए भगवान कृष्ण को दुष्ट राजा शिशुपाल का वध करना पड़ा था। इस दौरान भगवान कृष्ण की अंगूठें में गहरी चोट आ गई थी। जिसे देखने के बाद द्रौपदी ने अपने वस्त्र का उपयोग करके भगवान कृष्ण का खून बहने से रोक दिया था।
जिसे देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए थे। और उन्होंने द्रौपदी के साथ एक भाई बहन का रिश्ता निभाया। और भगवान कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि वह हमेशा उनके साथ रहेंगे।बहुत साल बाद जब पांडव द्रौपदी को कुरुक्षेत्र में जुए के खेल में हार गए थे तब कौरवों के राजकुमार दुशासन ने द्रौपदी का चिर हरण करने की कोशिश की थी। और उस दौरान भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करी थी और उनकी लाज बचाई थी।
महाभारत के दौरान द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को बांधी राखी
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को यह सलाह दी थी कि महाभारत की लड़ाई मैं खुद को और अपनी सेना को बचाने के लिए उन्हें राखी (Raksha Bandhan) का उपयोग करना चाहिए। जिस पर माता कुंती ने अपने नाती के हाथों में राखी बांधी थी वही द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथों पर राखी का धागा (Raksha Bandhan) बांधा था।
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मां संतोषी ने बांधी भाई शुभ और लाभ को राखी
भगवान गणेश के दोनों पुत्र शुभ और लाभ इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनकी कोई बहन नहीं है। जिसके बाद उन्होंने अपने पिता से एक बहन लाने की जिद की। जिसके बाद भगवान गणेश अपनी शक्ति का उपयोग करके माता संतोषी को उत्पन्न करा। और जिस दिन ऐसा हुआ उस दिन रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का ही पर्व था जब दोनों भाइयों को उनकी बहन प्राप्त हुई।
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